गरीबी में बचपन बीता, 12 साल की उम्र में पेट भरने के लिए करनी पडी मजदूरी, आज है करोडों मालिक।

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कभी कभी ज़िन्दगी ऐसे कठिन मोड़ पर ले आती है, जहाँ से इंसान का आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल होता है। ज़िन्दगी के इन मुश्किल पड़ावों में कुछ लोग हार मान लेते हैं, वहीं कुछ गिनी चुने लोग उन मुश्किलों को पार करके कामयाबी की कभी न भूलने वाली कहानी लिख देते हैं।

ऐसा ही कुछ किया भंवरलाल आर्य ने, जिनकी संघर्ष की कहानी न सिर्फ़ आगे बढ़ने को प्रेरित करती है बल्कि बुरे से बुरे वक़्त में हौंसला रखने की हिम्मत भी देती है। तो आइए जानते हैं कौन है भंवरलाल आर्य, जो आज हैं करोड़ों के मालिक-

राजस्थान के रहने वाले भंवरलाल आर्य आज बेहद आरामदायक ज़िन्दगी जी रहे हैं, उनके पास किसी चीज की कमी नहीं है। लेकिन भंवरलाल की ज़िन्दगी हमेशा से इतनी सुख और समृद्धि भरी नहीं थी और न ही उन्हें धन दौलत अपने पूर्वजों से मिली है।

 

भंवरलाल ने अपनी जिंदगी में किया कई कष्ट का सामना

भंवरलाल आर्य अपनी ज़िन्दगी में उस दौर से गुजरे हैं, जब पेट को भूख का एहसास तो होता था, लेकिन उस भूख को मिटाने के लिए उनके पास खाना तक नहीं होता था। भंवरलाल आर्य ने बचपन से ही अपनी जीवन में ग़रीबी और आर्थिक तंगी का सामना किया था।

जिसकी वज़ह से उन्हें पेट भरने के लिए मजदूरी तरह करनी पड़ी। लेकिन भंवरलाल आर्य ने हालातों के आगे घुटने नहीं टेके और न ही हार मानी, उन्होंने इतनी मेहनत और संघर्ष किया कि आज लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं।

भंवरलाल आर्य का जन्म 1 जून 1969 को राजस्थान के कल्याणपुर तहसील के ढाणी में हुआ था, लेकिन इस बच्चे ने अपने जन्म के साथ ही ग़रीबी का एहसास कर लिया था। भंवरलाल आर्य के परिवार बेहद गरीब था, यहाँ तक उनके माता-पिता को पीना का पानी भरने के लिए भी गाँव से 6-7 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।

 

भंवरलाल ने छोटी सी उम्र से किया पैसा कमाने का फैंसला

भंवरलाल आर्य के पिता राणाराम मुंडण और माँ राजोदेवी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे को ग़रीबी का सामना करना पड़े, इसलिए उन्होंने भंवरलाल आर्य को छोटी-सी उम्र ही उनकी नानी के घर भेज दिया था। भंवरलाल आर्य 12 साल की उम्र तक अपनी नानी के साथ रहे और वहीं 5वीं कक्षा तक पढ़ाई की, लेकिन इसके बाद भंवरलाल की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल गई।

भंवरलाल आर्य को जब पता चला कि उनके माता पिता और परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब है, तो उन्होंने छोटी-सी उम्र में ही पैसे कमाने का फ़ैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने राजस्थान के अलग-अलग इलाकों में काम की तलाश की, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

इसके बाद भंवरलाल आर्य ने काम की तलाश में मुंबई जैसे बड़े शहर का रूख किया और दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए मजदूरी करने लगे। महज़ 12 साल की उम्र में ही भंवरलाल आर्य ने मुंबई समेत कोलकाता और बैंगलोर जैसे बड़े-बड़े शहरों में मजदूरी की और अपने परिवार की आर्थित स्थिति ठीक करने की कोशिश में लग गए।

 

भंवरलाल ने यहां से बनाई संघ में पहचान

इसी तरह अलग-अलग शहरों में काम करते हुए भंवरलाल आर्य कर्नाटक जा पहुँचे, जहाँ उनकी मेहनत और ईमानदारी से खुश होकर एक सेठ ने उन्हें अपनी दुकान में काम पर रख लिया।

शुरुआत में सेठ दुकान में काम करने के बदले भंवरलाल आर्य को रहने के लिए घर, खाना और कपड़े की सुविधा देता था, लेकिन बाद में सेठ ने आर्थिक ज़रूरतों के साथ भंवरलाल को हर महीने 50 रुपए सैलरी देना शुरू कर दिया।

उसी दुकान पर काम करते हुए भंवरलाल की ज़िन्दगी में बदलाव आने लगा और उन्होंने दुकान संभालने का अच्छा हुनर सीख लिया। दरअसल उस दुकान पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सदस्यों का आना जाना लगा रहता था, ऐसे में भंवरलाल आर्य ने संघ के लोगों से अच्छी खासी जान पहचान बना ली।

 

संघ से जुडने के बाद भंवरलाल की जिंदगी में आय़ा बडा बदलाव

इसी दौरान भंवरलाल आर्य को संघ के सदस्यों से इतना लगाव हो गया कि उन्होंने दुकान की नौकरी छोड़ दी और संघ की शाखा में ही शामिल हो गए। दरअसल दुकान का मालिक भंवरलाल को 22 दिन की छुट्टी देने से इंकार कर रहा था, लेकिन भंवरलाल को संघ के शिविर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सदस्यों का जीवन प्रसंग सुनना था।

बस फिर क्या था संघ के लोगों की जीवनी सुनने के लिए भंवरलाल आर्य ने अपनी नौकरी छोड़ दी। हालांकि संघ के सदस्यों से मिलने और उनके जीवन प्रसंग सुनने के साथ-साथ भंवरलाल आर्य ने कई जगह अलग-अलग नौकरियाँ भी की, जिसकी बदौलत उनकी जान पहचान बढ़ती चली गई।

कई सालों तक संघ के साथ जुड़े रहने और नौकरी करने के बाद भंवरलाल आर्य ने फ़ैसला किया कि वह अपना काम शुरू करेंगे। जिसके बाद उन्होंने महज़ 30 हज़ार रुपयों से कपड़ों का व्यापार शुरू कर दिया और उस व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत करने लगे।

 

भंवरलाल ने शुरु किया नया बिजनैस

यह भंवरलाल आर्य की मेहनत का ही नतीजा था कि उनका व्यापार जल्द ही कामयाबी के उस मुकाम पर पहुँच गया कि भंवरलाल आर्य की गिनती करोड़पति व्यापारियों की जाने लगी।

भंवरलाल आर्य के कपड़ों के व्यापार ने महज़ 1 साल के अंदर 1 लाख रुपए का मुनाफा कमा लिया, जिसके बाद साल 1990 में उन्होंने एक दूसरी दुकान खरीदी और अपने छोटे भाई के साथ मिलकर जनता टेक्सटाइल से नया बिजनेस शुरू कर दिया।

भंवरलाल आर्य के कपड़े और उनके टेक्सटाइल का नाम पूरे इलाके में मशहूर होने लगा, जिसके बाद भंवरलाल आर्य को व्यापारी संघ का अध्यक्ष बना दिया गया। साल 2001 आते-आते भंवरलाल आर्य कपड़ों के व्यापारिक क्षेत्र में जाना माना नाम बन चुके थे, जिसके बाद उन्होंने राजीव दीक्षित द्वारा शुरू किए गए आजादी बचाओ आंदोलन में हिस्सा लिया।

 

भंवरलाल संघर्ष करके हासिल की कामयाबी

इसके साथ ही भंवरलाल आर्य ने कई स्कूलों, मंदिरों और अस्पतालों का निर्माण भी करवाया, ताकि आम जनता का कल्याण हो सके। 12 साल की उम्र से कमाई करने वाले भंवरलाल आर्य पहले लखपति और फिर करोड़पति बन गए।

लेकिन ज़िन्दगी भर भागदौड़ करने की वज़ह से वह क्रोनिक अस्थमा से पीड़ित हो गए। कई तरह की मेडिकल जांच और दवाईयों का सेवन करने के बावजूद भी भंवरलाल आर्य का अस्थमा ठीक नहीं हुआ, जिसके बाद उन्होंने योग के जरिए ख़ुद को ठीक करने का फ़ैसला किया।

रोजाना योग करने से भंवरलाल आर्य की सेहत पर अच्छा प्रभाव पड़ना शुरू हो गया, आज स्थिति ये है कि योग भंवरलाल आर्य की ज़िन्दगी बन चुका है।

 

भंवरलाल की कंपनी का मुनाफा हुआ 100 करोड से भी ज्यादा

भंवरलाल आर्य ने अपने छोटे भाई के साथ जिस जनता टेक्सटाइल कंपनी की नींव रखी थी, आज वह तरक्क़ी की नई कहानी लिख रही है। इस कंपनी का व्यापार पूरे भारत में चलता है, जिसके परिणामस्वरूप जनता टेक्सटाइल का सालाना टर्न ओवर 100 करोड़ से भी ज़्यादा पहुँच चुका है।

इसके साथ ही भंवरलाल आर्य कर्नाटक राज्य उत्सव, संस्कार भारती से योग रत्न जैसे कई पुरस्कार हासिल कर चुके हैं, उनके सामाजिक कल्याणकारी कार्यों की वज़ह से कई लोगों को फायदा होता है।

जिसकी वज़ह से उन्हें अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है। हालांकि करोड़ोपति होने के बावजूद भी भंवरलाल आर्य बेहद सादगी भरा जीवन व्यतीत करते हैं, जो काबिले तारीफ है।

 

भंवरलाल ने हासिल किए कई पुरस्कार

भंवरलाल आर्य एक ऐसे व्यक्ति है जो अपने बचपन में लाइट, पीने के साफ़ पानी और दो वक़्त की रोटी के लिए तरसते थे, लेकिन उन्होंने अपनी जिदंगी में इतना संघर्ष किया कि उसका परिणाम आज दुनिया के सामने है।

भंरवलाल आर्य ने ख़ुद संघर्ष करके कामयाबी तो हासिल की ही, साथ में अपने छोटे भाई और परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मदद की।